नित्य मानस चर्चा🌴 दोहा 232 से आगे दोहा 233 तक
🌴नित्य मानस चर्चा🌴
दोहा 232 से आगे दोहा 233 तक
सोभा सीवँ सुभग दोउ बीरा।
नील पीत जलजाभ सरीरा॥
मोरपंख सिर सोहत नीके।
गुच्छ बीच बिच कुसुम कली के॥1॥
दोनों सुंदर भाई शोभा की सीमा हैं। उनके शरीर की आभा नीले और पीले कमल की सी है। सिर पर सुंदर मोरपंख सुशोभित हैं। उनके बीच-बीच में फूलों की कलियों के गुच्छे लगे हैं॥1॥
भाल तिलक श्रम बिन्दु सुहाए।
श्रवन सुभग भूषन छबि छाए॥
बिकट भृकुटि कच घूघरवारे।
नव सरोज लोचन रतनारे॥2॥
माथे पर तिलक और पसीने की बूँदें शोभायमान हैं। कानों में सुंदर भूषणों की छबि छाई है। टेढ़ी भौंहें और घुँघराले बाल हैं। नए लाल कमल के समान रतनारे (लाल) नेत्र हैं॥2॥
चारु चिबुक नासिका कपोला।
हास बिलास लेत मनु मोला॥
मुखछबि कहि न जाइ मोहि पाहीं।
जो बिलोकि बहु काम लजाहीं॥3॥
ठोड़ी नाक और गाल बड़े सुंदर हैं और हँसी की शोभा मन को मोल लिए लेती है। मुख की छबि तो मुझसे कही ही नहीं जाती, जिसे देखकर बहुत से कामदेव लजा जाते हैं॥3॥
उर मनि माल कंबु कल गीवा।
काम कलभ कर भुज बलसींवा॥
सुमन समेत बाम कर दोना।
सावँर कुअँर सखी सुठि लोना॥4॥
वक्षःस्थल पर मणियों की माला है। शंख के सदृश सुंदर गला है। कामदेव के हाथी के बच्चे की सूँड के समान (उतार-चढ़ाव वाली एवं कोमल) भुजाएँ हैं, जो बल की सीमा हैं। जिसके बाएँ हाथ में फूलों सहित दोना है, हे सखि! वह साँवला कुँअर तो बहुत ही सलोना है॥4॥
केहरि कटि पट पीत धर
सुषमा सील निधान।
देखि भानुकुलभूषनहि
बिसरा सखिन्ह अपान॥233॥
सिंह की सी (पतली, लचीली) कमर वाले, पीताम्बर धारण किए हुए, शोभा और शील के भंडार, सूर्यकुल के भूषण श्री रामचन्द्रजी को देखकर सखियाँ अपने आपको भूल गईं॥233॥
🌴जय जय श्रीसीताराम🌴
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