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Showing posts from July, 2018

कांवड़ यात्रा कब शुरू हुई, किसने की, क्या उद्देश्य है, जानिए अनजाना तथ्य!!!

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कांवड़ यात्रा कब शुरू हुई, किसने की, क्या उद्देश्य है, जानिए अनजाना तथ्य !!!!!!! भगवान भोलेनाथ का ध्यान जब हम करते हैं तो श्रावण का महीना, रूद्राभिषेक और कांवड़ का उत्सव आंखों के सामने आता है। लेकिन कांवड़ यात्रा कब शुरू हुई, किसने की, क्या उद्देश्य है इसका, भारत के किन क्षेत्रों में यह यात्रा होती है, आइए,जानें। अलग अलग जगहों की अलग मान्यताएं रही हैं, ऐसा मानना है कि सर्वप्रथम भगवान परशुराम ने कांवड़ लाकर “पुरा महादेव”, में जो उत्तर प्रदेश प्रांत के बागपत के पास मौजूद है, गढ़मुक्तेश्वर से गंगा जी का जल लाकर उस पुरातन शिवलिंग पर जलाभिषेक, किया था।  आज भी उसी परंपरा का अनुपालन करते हुए श्रावण मास में गढ़मुक्तेश्वर, जिसका वर्तमान नाम ब्रजघाट है, से जल लाकर लाखों लोग श्रावण मास में भगवान शिव पर चढ़ाकर अपनी कामनाओं की पूर्ति करते हैं। उत्तर भारत में भी गंगाजी के किनारे के क्षेत्र के प्रदेशों में कांवड़ का बहुत महत्व है। राजस्थान के मारवाड़ी समाज के लोगों के यहां गंगोत्री, यमुनोत्री, केदारनाथ, बदरीनाथ के तीर्थ पुरोहित जो जल लाते थे और प्रसाद के साथ जल देते थे, उन्हें कांवड़िये कहते थे...

सत्य से बढकर और कुछ नहीं है।

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* नास्ति सत्यसमो धर्मो न सत्याद्विद्यते परम् । न हि तीव्रतरं किञ्चिदनृतादिह विद्यते ॥ सत्य जैसा अन्य धर्म नहीं । सत्य से पर कुछ नहीं । असत्य से ज्यादा तीव्रतर कुछ नहीं । संसार में बहुत कम लोग ऐसे हैं जो सदा सत्यभाषण तथा सत्य का ही आचरण करते हैं ।* *अधिकांश लोग अवसर आते ही झूठ का प्रयोग करते हैं। वे समझते हैं कि झूठ बोलना लाभदायक है , और सत्य बोलना बहुत कठिन और कष्टदायक है। इसलिए प्रायः लोग जल्दी से झूठ बोल देते हैं , मिथ्या आचरण करते हैं ।* *परंतु जो गंभीर चिंतक होते हैं , वे दूर तक सोचते हैं।  झूठ के दुष्परिणामों = चिंता तनाव भय आदि को समझ लेते हैं , इसलिए मिथ्या चरण नहीं करते,  मिथ्या भाषण नहीं करते,  और सत्य का ही प्रयोग करते हैं । वे निश्चिंत तनावमुक्त आनंदित निर्भय होकर जीवन जीते हैं। आप भी इन बातों का चिंतन करें । झूठ से बचने का प्रयास करें, सत्य का आचरण करें तथा सदा निर्भय होकर जिएँ। *जीव मात्र सुख चाहता है ।सुख भी ऐसा जो सर्वदा मिले सर्वत्र मिले और सब से मिले जिसके लिए परिश्रम न करना पड़े। जो पराधीन न हो एवं जिसका भान होता रहे इतनी उच्च कोटि की महत्वाकांक...

नित्य मानस चर्चा🌴 दोहा 233 से आगे दोहा 334 तक

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श्री राम जय राम जय जय राम जय जय विघ्न हरण हनुमान सुप्रभात मंगलम गुरु पूर्णिमा की मंगल कामनाओं सहित श्री सद्गुरु चरण कमलेभ्यो नमः 🚩🚩🚩🚩🚩🚩 🌴नित्य मानस चर्चा🌴 दोहा 233 से आगे दोहा 334 तक धरि धीरजु एक आलि सयानी। सीता सन बोली गहि पानी॥ बहुरि गौरि कर ध्यान करेहू। भूपकिसोर देखि किन लेहू॥1॥ एक चतुर सखी धीरज धरकर, हाथ पकड़कर सीताजी से बोली- गिरिजाजी का ध्यान फिर कर लेना, इस समय राजकुमार को क्यों नहीं देख लेतीं॥1॥ सकुचि सीयँ तब नयन उघारे। सनमुख दोउ रघुसिंघ निहारे॥ नख सिख देखि राम कै सोभा। सुमिरि पिता पनु मनु अति छोभा॥2॥ तब सीताजी ने सकुचाकर नेत्र खोले और रघुकुल के दोनों सिंहों को अपने सामने (खड़े) देखा। नख से शिखा तक श्री रामजी की शोभा देखकर और फिर पिता का प्रण याद करके उनका मन बहुत क्षुब्ध हो गया॥2॥ परबस सखिन्ह लखी जब सीता। भयउ गहरु सब कहहिं सभीता॥ पुनि आउब एहि बेरिआँ काली। अस कहि मन बिहसी एक आली॥3॥ जब सखियों ने सीताजी को परवश (प्रेम के वश) देखा, तब सब भयभीत होकर कहने लगीं- बड़ी देर हो गई। (अब चलना चाहिए)। कल इसी समय फिर आएँगी, ऐसा कहकर एक सखी मन में हँसी॥3॥ ...

मानव जीवन को कैसे सार्थक करें?

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मित्रो हम आपको बतायेगें कि हम मानव जीवन को कैसे सार्थक करें?????? *बंदउँ गुरु पद कंज कृपा सिंधु नररूप हरि। महामोह तम पुंज जासु बचन रबि कर निकर॥ भावार्थ:-मैं उन गुरु महाराज के चरणकमल की वंदना करता हूँ, जो कृपा के समुद्र और नर रूप में श्री हरि ही हैं और जिनके वचन महामोह रूपी घने अन्धकार का नाश करने के लिए सूर्य किरणों के समूह हैं॥ अपने जीवन में व्यक्ति निर्माण, परिवार निर्माण और समाज निर्माण जैसे कार्य सम्मलित किजियें,  एक काम हम सबका है वह हैं -व्यक्ति निर्माण, हमें अपने आपके निर्माण की कसम खानी होगी, हम अपने स्वभाव को बदलें, हम अपने चिंतन को बदलें, हम अपने आचरण को बदलं। दूसरा परिवर्तन जो हमें करना है वो हमारे परिवार के सम्बन्ध में जो हमारी मान्यतायें हैं, जो आधार हैं, उनको बदलें, परिवार के व्यक्ति तो नहीं बदले जा सकते, हमारा अपने कुटुम्ब के प्रति जो रवैया है, जो हमारे सोचने का तरीका है,उसको हम आसानी से बदल सकते हैं। समाज के प्रति हमारे कुछ कर्तव्य हैं, दायित्व हैं, समाज के प्रति अपने कर्तव्यों और दायित्वों से हम छुटकारा पा नहीं सकेंगे, समाज की उपेक्षा करते रहेंगे तो फिर...

नित्य मानस चर्चा🌴 दोहा 232 से आगे दोहा 233 तक

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🌴नित्य मानस चर्चा🌴 दोहा 232 से आगे दोहा 233 तक सोभा सीवँ सुभग दोउ बीरा। नील पीत जलजाभ सरीरा॥ मोरपंख सिर सोहत नीके। गुच्छ बीच बिच कुसुम कली के॥1॥ दोनों सुंदर भाई शोभा की सीमा हैं। उनके शरीर की आभा नीले और पीले कमल की सी है। सिर पर सुंदर मोरपंख सुशोभित हैं। उनके बीच-बीच में फूलों की कलियों के गुच्छे लगे हैं॥1॥ भाल तिलक श्रम बिन्दु सुहाए। श्रवन सुभग भूषन छबि छाए॥ बिकट भृकुटि कच घूघरवारे। नव सरोज लोचन रतनारे॥2॥ माथे पर तिलक और पसीने की बूँदें शोभायमान हैं। कानों में सुंदर भूषणों की छबि छाई है। टेढ़ी भौंहें और घुँघराले बाल हैं। नए लाल कमल के समान रतनारे (लाल) नेत्र हैं॥2॥ चारु चिबुक नासिका कपोला। हास बिलास लेत मनु मोला॥ मुखछबि कहि न जाइ मोहि पाहीं। जो बिलोकि बहु काम लजाहीं॥3॥ ठोड़ी नाक और गाल बड़े सुंदर हैं और हँसी की शोभा मन को मोल लिए लेती है। मुख की छबि तो मुझसे कही ही नहीं जाती, जिसे देखकर बहुत से कामदेव लजा जाते हैं॥3॥ उर मनि माल कंबु कल गीवा। काम कलभ कर भुज बलसींवा॥ सुमन समेत बाम कर दोना। सावँर कुअँर सखी सुठि लोना॥4॥ वक्षःस्थल पर मणियों की माला है। शं...

गुरु गूंगे गुरू बावरे गुरू के रहिये दास गुरु जो भेजे नरक को, स्वर्ग कि रखिये आस !

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*"गुरु गूंगे गुरू बावरे गुरू के रहिये दास "* एक बार की बात है नारद जी विष्णु भगवानजी से मिलने गए ! भगवान ने उनका बहुत सम्मान किया ! जब नारद जी वापिस गए तो विष्णुजी ने कहा हे लक्ष्मी जिस स्थान पर नारद जी बैठे थे ! उस स्थान को गाय के गोबर से लीप दो ! जब विष्णुजी यह बात कह रहे थे तब नारदजी बाहर ही खड़े थे ! उन्होंने सब सुन लिया और वापिस आ गए और विष्णु भगवान जी से पुछा हे भगवान जब मै आया तो आपने मेरा खूब सम्मान किया पर जब मै जा रहा था तो आपने लक्ष्मी जी से यह क्यों कहा कि जिस स्थान पर नारद बैठा था उस स्थान को गोबर से लीप दो ! भगवान ने कहा हे नारद मैंने आपका सम्मान इसलिए किया क्योंकि आप देव ऋषि है और मैंने देवी लक्ष्मी से ऐसा इसलिए कहा क्योंकि आपका कोई गुरु नहीं है ! आप निगुरे है ! जिस स्थान पर कोई निगुरा बैठ जाता है वो स्थान गन्दा हो जाता है ! यह सुनकर नारद जी ने कहा हे भगवान आपकी बात सत्य है पर मै गुरु किसे बनाऊ ! नारायण! बोले हे नारद धरती पर चले जाओ जो व्यक्ति सबसे पहले मिले उसे अपना गुरु मानलो ! नारद जी ने प्रणाम किया और चले गए ! जब नारद जी धरती पर आये तो उन्हे...

पञ्चवटी में लक्ष्मण जी के पाँच प्रश्न

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पञ्चवटी में लक्ष्मण जी भगवान श्री राम जी से पाँच प्रश्न पूछते हैं ????? * मोहि समुझाइ कहहु सोइ देवा। सब तजि करौं चरन रज सेवा॥ कहहु ग्यान बिराग अरु माया। कहहु सो भगति करहु जेहिं दाया॥ भावार्थ:-हे देव! मुझे समझाकर वही कहिए, जिससे सब छोड़कर मैं आपकी चरणरज की ही सेवा करूँ। ज्ञान, वैराग्य और माया का वर्णन कीजिए और उस भक्ति को कहिए, जिसके कारण आप दया करते हैं॥ * ईस्वर जीव भेद प्रभु सकल कहौ समुझाइ। जातें होइ चरन रति सोक मोह भ्रम जाइ॥ हे प्रभो! ईश्वर और जीव का भेद भी सब समझाकर कहिए, जिससे आपके चरणों में मेरी प्रीति हो और शोक, मोह तथा भ्रम नष्ट हो जाएँ॥ प्रत्येक जिज्ञासु के ये पांच प्रश्न होते हैं। १- ज्ञान किसको कहते हैं ? २- वैराग्य किसको कहते हैं ? ३- माया का स्वरूप बतलाइये ? ४- भक्ति के साधन बताइये कि भक्ति कैसे प्राप्त हो ? ५- जीव और ईश्वर में भेद बतलाइये ? एक साधक के द्वारा एक सिद्ध को ये पाँच प्रश्न हुए हैं - भगवान श्री राम लक्ष्मण जी की बात सुनकर कहते हैं - थोरेहि महँ सब कहउँ बुझाई । सुनहु तात मति मन चित्त लाई ।। अर्थात् थोड़े में ही सब समझा देता हूँ। यही विव...

कबीर वाणी ,मन ऐसा निर्मल भया जैसे गंगा नीर ,पाछे पाछे हरि फिरे कहत कबीर कबीर

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 मन ऐसा निर्मल भया जैसे गंगा नीर  पाछे पाछे हरि फिरे कहत कबीर कबीर कबीर वाणी *वाह कबीरजी !* *कितनी मार्मिक बात कह दी है आपने।* *कबीर कहते हैं कि मन से जब सभी कामनाएं, वासनाएं आदि विकार तिरोहित हो जाते हैं, तब मन गंगा जल की तरह निर्मल हो जाता है।* *ऐसी अवस्था को उपलब्ध हुए व्यक्ति को परमात्मा को कही ढूंढने जाने की आवश्यकता नहीं है बल्कि स्वयं परमात्मा ही उसे ढूंढ लेते हैं।* *निरपेक्षं मुनिं शान्तं निर्वैरं समदर्शनम्।* *अनुव्रजाम्यहं नित्यं पूयेयेत्यंघ्रिरेणुभि:।।* *(भागवतम्/११/१४/१६)* *कहने का अर्थ यह है कि मन के निर्मल होते ही व्यक्ति स्वयं ही परमात्मा स्वरूप हो जाता है।* *मन के निर्मल होने का अर्थ मन का अमन होना है। मनुष्य में मन का होना ही उसे परमात्मा से अलग करता है। मन के मिटते ही वह स्वयं ही परमात्मा स्वरूप हो जाता है।* *"परमात्मेति चाप्युक्तो .."* *(गीता/१३/२२)* *अब उसे परमात्मा को पाने के लिए किसी प्रकार के विशेष साधन अथवा प्रयास करने की आवश्यकता नहीं है।* *🌷हरि:शरणम्🌷* *🏵👴🏻कबीर वाणी भाग-20👴🏻🏵* *साधू भूखा भाव का* *धन का भूखा नाही |* ...

नित्य मानस चर्चा

🌴नित्य मानस चर्चा🌴 दोहा 230 से आगे 231 तक तात जनकतनया यह सोई। धनुषजग्य जेहि कारन होई॥ पूजन गौरि सखीं लै आईं। करत प्रकासु फिरइ फुलवाईं॥1॥ हे तात! यह वही जनकजी की कन्या है, जिसके लिए धनुषयज्ञ हो रहा है। सखियाँ इसे गौरी पूजन के लिए ले आई हैं। यह फुलवाड़ी में प्रकाश करती हुई फिर रही है॥1॥ जासु बिलोकि अलौकिक सोभा। सहज पुनीत मोर मनु छोभा॥ सो सबु कारन जान बिधाता। फरकहिं सुभद अंग सुनु भ्राता॥2॥ जिसकी अलौकिक सुंदरता देखकर स्वभाव से ही पवित्र मेरा मन क्षुब्ध हो गया है। वह सब कारण (अथवा उसका सब कारण) तो विधाता जानें, किन्तु हे भाई! सुनो, मेरे मंगलदायक (दाहिने) अंग फड़क रहे हैं॥2॥ रघुबंसिन्ह कर सहज सुभाऊ। मनु कुपंथ पगु धरइ न काऊ॥ मोहि अतिसय प्रतीति मन केरी। जेहिं सपनेहुँ परनारि न हेरी॥3॥ रघुवंशियों का यह सहज (जन्मगत) स्वभाव है कि उनका मन कभी कुमार्ग पर पैर नहीं रखता। मुझे तो अपने मन का अत्यन्त ही विश्वास है कि जिसने (जाग्रत की कौन कहे) स्वप्न में भी पराई स्त्री पर दृष्टि नहीं डाली है॥3॥ जिन्ह कै लहहिं न रिपु रन पीठी। नहिं पावहिं परतिय मनु डीठी॥ मंगन लहहिं न जिन्ह कै न...

क्या है महामृत्युंजय जाप ?

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क्या है महामृत्युंजय जाप ??? 28 जुलाई 2018 से श्रावण मास प्रारंभ सावन के महीने में महामृत्युंजय करने से समस्त नवग्रह की शांति हो जाती है भविष्य में आने वाली सभी समस्या का समाधान हो जाता है जिनके घर महामृत्युंजय की पूजा होती है उस घर में भगवान शिव का वास होता है इस कारण उस घर में भूत-प्रेत कभी नहीं आते दुख दरिद्र कभी नहीं आते भगवान शिव की कृपा से घर में शांति बनी रहती है !!  **** घर का कोई सदस्य किसी गंभीर बीमारी से ग्रस्त है और समझती इलाज कराने के बाद में भी स्वास्थ्य लाभ नहीं हो रहा है तो भगवान मृत्युंजय का जाप घर में कराना चाहिए ***जिन घर में आर्थिक तंगी चल रही है प्रयास करने के बाद में भी नौकरी नहीं लग पा रही जॉब के लिए परेशान हो रहै है वह व्यक्ति कहीं मृत्युंजय का जाप करा ले तो उसके घर में धन धान्य की वृद्धि होगी *रुद्राभिषेक- विधान-एक सम्पूर्ण जानकारी-* रूद्र अर्थात भूत भावन शिव का अभिषेक शिव और रुद्र परस्पर एक दूसरे के पर्यायवाची हैं। शिव को ही रुद्र कहा जाता है क्योंकि- *रुतम्-दु:खम्, द्रावयति-नाशयतीतिरुद्र:* यानि की भोले सभी दु:खों को नष्ट कर देते हैं। हमारे ध...

देवशयनी एकादशी सोमवार

देवशयनी एकादशी सोमवार जुलाई 23 विशेष 〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️ आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवशयनी एकादशी कहते हैं। धर्म ग्रंथों के अनुसार, इस दिन से भगवान विष्णु चार महीने तक पाताल में शयन करते हैं। ये चार महीने चातुर्मास कहलाते हैं। चातुर्मास को भगवान की भक्ति करने का समय बताया गया है। इस दौरान कोई मांगलिक कार्य भी नहीं किए जाते। इसके दौरान जितने भी पर्व, व्रत, उपवास, साधना, आराधना, जप-तप किए जाते हैं उनका विशाल स्वरूप एक शब्द में 'चातुर्मास्य'* कहलाता है। चातुर्मास से चार मास के समय का बोध होता है और चातुर्मास्य से इस समय के दौरान किए गए सभी पर्वों का समग्र बोध होता है। पुराणों में इस चौमासे* का विशेष रूप से वर्णन किया गया है। भागवत में इन चार माहों की तपस्या को एक यज्ञ की संज्ञा दी गई है। वराह पुराण में इस व्रत के बारे में कुछ उदारवादी बातें भी बताई गई हैं। *शास्त्रों व पुराणों* में इन चार माहों के लिए कुछ विशिष्ट नियम बताए गए हैं। इसमें चार महीनों तक अपनी रुचि व अभीष्ठानुसार नित्य व्यवहार की वस्तुएं त्यागना पड़ती हैं। कई लोग खाने में अपने सबसे प्रिय व्यंज...

*"क्या धरती पर भगवान हैं ?*

::::::::::~:::::::::×:::::::::~:::::::::      *"धरती पर भगवान हैं* - ::::::::::~:::::::::×:::::::::~:::::::::: १. *"अमरनाथजी"* में शिवलिंग अपने आप बनता है। २. *"माँ ज्वालामुखी"* में हमेशा ज्वाला निकलती है। ३. *"मैहर माता मंदिर"* में रात को आल्हा अब भी आते हैं। ४. सीमा पर स्थित *"तनोट माता मंदिर"* में 3000 बम में से एक का भी ना फूटना। ५. इतने बड़े हादसे के बाद भी *"केदारनाथ मंदिर"* का बाल ना बांका होना। ६. पूरी दुनियां मैं आज भी सिर्फ *"रामसेतु के पत्थर"* पानी में तैरते हैं। ७. *"रामेश्वरम धाम"* में सागर का कभी उफान न मारना। ८. *"पुरी के मंदिर"* के ऊपर से किसी पक्षी या विमान का न निकलना। ९. *"पुरी मंदिर" की पताका हमेशा हवा के विपरीत* दिशा में उड़ना। १०. *उज्जैन में "भैरोंनाथ" का मदिरा पीना।* ११. *गंगा और नर्मदा माँ (नदी) के पानी का कभी खराब* न होना। १२,  *श्री राम नाम धन संग्रह बैंक में संग्रहीत इकतालीस अरब राम नाम मंत्र पूरित ग्रंथों को (कागज होने पर भी)...

प्रणाम का महत्व

प्रणाम का महत्व 🙏 प्रणाम प्रेम है। प्रणाम अनुशासन है। प्रणाम शीतलता है। प्रणाम आदर सिखाता है। प्रणाम से सुविचार आते है। प्रणाम झुकना सिखाता है। प्रणाम क्रोध मिटाता है। प्रणाम आँसू धो देता है। प्रणाम अहंकार मिटाता है। प्रणाम हमारी संस्कृति है। 🙏 आप सबको मेरा  🙏 #सादर_प्रणाम🙏🌷

अनमोल वचन

हरि:ॐ जो सुख में अहंकार को आने नहीं देता और दुःख में आस्था को जाने नहीं देता वही बुद्धिमान कहलाता है। ~ अशनेरमृतस्य चोभयोर्वशिनश्चाम्बुधराश्च योनय:।।-कुमारसम्भव ४/४३ अर्थात्- जैसे बादलों के मध्य में वज्र और अमृत दोनों रहते हैं, उसी प्रकार संयमी पुरुषों के हृदय में क्रोध व दया दोनों रहते हैं। ~ विपदि भवति काचिद्दोषरूपा गुणश्री:।-हरविजय ४१/३० अर्थात्-गुणों की शोभा भी विपत्ति में कभी-कभी दोषरूप हो जाती है। ~ उस शिक्षा का कोई मतलब नहीं है जो इंसानियत न सिखाती हो....... स्वामी विवेकानंद🙏 ~ पानी मर्यादा तोड़े तो विनाश.. और वाणी मर्यादा तोड़े तो सर्वनाश। इसलिए हमेशा अपनी वाणी पर संयम रखें।। 🌿🌺जय श्री राम🌺🌿 🍃🥀🍃🥀🍃🥀🍃🥀 "आत्मा तो हमेशा से  जानती है, कि सही क्या है, चुनौती तो मन को समझाने की होती है।" #जय_श्री_राधे_कृष्ण🙏🚩🚩 लंबी उम्र के पीछे भागना बेमानी है सोच ऐसी रखें कि जिंदगी भले ही छोटी हो लेकिन ऐसी हो कि सदियों तक लोगो के दिलों मे जिंदा रह सकें.....!!!!!        *आप का दिन शुभ*          *जीवन...

एक ऐसा परिवार जिसकी कथा स्वयं शिव जी भी गाते है

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 श्री सूर्य देवाय नमः *एक ऐसा परिवार जिसकी कथा स्वयं शिव जी भी गाते है* रामायण की कथा आज हर घर में गाई जाती है,क्योकि रामायण की कथा कोई सामान्य परिवार की कथा नहीं है, एक ऐसा दिव्य परिवार जहाँ हर व्यक्ति के कर्मो में दिव्यता है, इसलिए स्वयं शिव जी भी कैलाश पर बैठकर इस परिवार की कथा गाते है. जिसकी हर चौपाई अपने आप में सिद्ध मंत्र है.सुबह शाम भक्तजन जिसे बड़े प्रेम से गाते है. और क्यों न गाये,जहाँ आज के परिवारों में सोच खत्म होती है वही इस परिवार की सोच शुरू होती है. 1.पिता (दशरथ ) – जिन्होंने वचन के लिए अपने प्राणों का त्याग कर दिया,पर वचन नहीं त्यागा,अपनी पत्नी को ही तो वचन दिए थे,चाहते तो ना निभाते.पर निभाया. 2.माता (कौसल्या)- कौसल्या जी कह सकती थी,राम मेरा पुत्र है मै रानियों में सबसे बड़ी हूँ, मेरे पुत्र को वन भेजने वाली कैकयी कौन होती है,कोई बड़े ह्रदय वाली होती तो कहती अपने पुत्र भरत को राजा बनाये या वन में भेजे, मेरे पुत्र को कैसे वन भेज सकती है,पर विपरीत परिस्थितियों में भी कौसल्या जी का चरित्र उभरकर आया. भगवान राम का प्राकट्य ऐसे ही नहीं कौसल्या जी के...

(विदुर- नीति) श्लोक

न ह्रश्यत्यात्मसम्माने नावमानेन तप्यते। गंगो ह्रद इवाक्षोभ्यो य: स पंडित उच्यते।। अर्थ:  जो अपना आदर-सम्मान होने पर ख़ुशी से फूल नहीं उठता, और अनादर होने पर क्रोधित नहीं होता तथा गंगाजी के कुण्ड के समान जिसका मन अशांत नहीं होता, वह ज्ञानी कहलाता है।। अनाहूत: प्रविशति अपृष्टो बहु भाषते। अविश्वस्ते विश्वसिति मूढ़चेता नराधम: ।। अर्थ:  मूढ़ चित्त वाला नीच व्यक्ति बिना बुलाये ही अंदर चला आता है, बिना पूछे ही बोलने लगता है तथा जो विश्वाश करने योग्य नहीं हैं उनपर भी विश्वाश कर लेता है। अर्थम् महान्तमासाद्य विद्यामैश्वर्यमेव वा। विचरत्यसमुन्नद्धो य: स पंडित उच्यते।। अर्थ:  जो बहुत धन, विद्या तथा ऐश्वर्यको पाकर भी इठलाता नहीं चलता, वह पंडित कहलाता है। एक: पापानि कुरुते फलं भुङ्क्ते महाजन: । भोक्तारो विप्रमुच्यन्ते कर्ता दोषेण लिप्यते।। अर्थ:  मनुष्य अकेला पाप करता है और बहुत से लोग उसका आनंद उठाते हैं। आनंद उठाने वाले तो बच जाते हैं; पर पाप करने वाला दोष का भागी होता है। एकं हन्यान्न वा हन्यादिषुर्मुक्तो धनुष्मता। बुद्धिर्बुद्धिमतोत्सृष्टा हन्याद् राष्ट...

नित्य मानस चर्चा

🌴नित्य मानस चर्चा🌴 दोहा 229 से आगे दोहा 230 तक कंकन किंकिनि नूपुर धुनि सुनि। कहत लखन सन रामु हृदयँ गुनि॥ मानहुँ मदन दुंदुभी दीन्ही। मनसा बिस्व बिजय कहँ कीन्ही॥1॥ कंकण (हाथों के कड़े), करधनी और पायजेब के शब्द सुनकर श्री रामचन्द्रजी हृदय में विचार कर लक्ष्मण से कहते हैं- (यह ध्वनि ऐसी आ रही है) मानो कामदेव ने विश्व को जीतने का संकल्प करके डंके पर चोट मारी है॥1॥ अस कहि फिरि चितए तेहि ओरा। सिय मुख ससि भए नयन चकोरा॥ भए बिलोचन चारु अचंचल। मनहुँ सकुचि निमि तजे दिगंचल॥2॥ ऐसा कहकर श्री रामजी ने फिर कर उस ओर देखा। श्री सीताजी के मुख रूपी चन्द्रमा (को निहारने) के लिए उनके नेत्र चकोर बन गए। सुंदर नेत्र स्थिर हो गए (टकटकी लग गई)। मानो निमि (जनकजी के पूर्वज) ने (जिनका सबकी पलकों में निवास माना गया है, लड़की-दामाद के मिलन-प्रसंग को देखना उचित नहीं, इस भाव से) सकुचाकर पलकें छोड़ दीं, (पलकों में रहना छोड़ दिया, जिससे पलकों का गिरना रुक गया)॥2॥ देखि सीय शोभा सुखु पावा। हृदयँ सराहत बचनु न आवा॥ जनु बिरंचि सब निज निपुनाई। बिरचि बिस्व कहँ प्रगटि देखाई॥3॥ सीताजी की शोभा देखकर श्री राम...

मनुस्मृति की प्रेरक शिक्षाएँ

*🌷 मनुस्मृति की प्रेरक शिक्षाएँ🌷* *१)* विधि यज्ञ से जप यज्ञ दश गुणा अधिक है और वही अगर दूसरों को न सुने ऐसा जप शतगुणा अधिक कहा है और वाणी के न हिलने केवल मन से जो जप किया जाए वह सहस्र गुणा अधिक कहा है।ये जो चार यज्ञ हैं ये सब जप यज्ञ के सोलहवें भाग को भी नहीं पाते अर्थात् जप यज्ञ सबसे श्रेष्ठ है। *२)* वेदाध्ययन,दान,यज्ञ,नियम और तप ये दुष्ट स्वभाव वाले को कभी सिद्ध नहीं होते। *३)* वेदों से समृद्ध कुल चाहे अल्प धन वाले भी हों,चाहे थोड़े धन वाले भी हों,परन्तु बड़े कुल की गिनती में गिने जाते हैं व यश को प्राप्त होते हैं।(अर्थात् कुल की प्रतिष्ठा वेद पाठ से है न कि नौकरी,व्यापार और धन आदि आडम्बर से) *४)*जो-जो कर्म दूसरे के आधीन हैं उन-२ को यत्न से छोड़ देवे और जो-जो अपने आधीन है उनको यत्न से करे।दूसरे के आधीन होना ही सम्पूर्ण दुःख है और स्वाधीनता ही सम्पूर्ण सुख है। *५)* असत्य भाषण से यज्ञ नष्ट होता है।विस्मय से तप तथा ब्राह्मणों की निन्दा से आयु और चारों और कहने से दान घटता है। *६)* जैसा किसी का आत्मा हो वैसा ही अपने को बताये क्योंकि जो अपने को और कुछ बताता है और है कुछ और,वह...

आत्मा की शक्ति

स्वामी रामतीर्थ कहते थे- “धरती को हिलाने के लिए धरती से बाहर खड़े होने की आवश्यकता नहीं है, आवश्यकता है आत्मा की शक्ति को जानने-जगाने की।” इस उक्ति में आत्म शक्ति की उस महत्ता का प्रतिपादन किया गया है, जिसका दूसरा नाम आत्म-विश्वास है। जिसका साक्षात्कार करके कोई भी व्यक्ति अपने परिवार में तथा अपने आशातीत परिवर्तन कर सकता है। विवेकानन्द, बुद्ध, ईसा, सुकरात और गान्धी की प्रचण्ड आत्मशक्ति ने युग के प्रवाह को मोड़ दिया। अभी हाल के स्वतन्त्रता संग्राम में महात्मा गान्धी ने सशक्त ब्रिटिश साम्राज्य की नींव उखाड़ दी। उन्होंने अपने दृढ़ संकल्प शक्ति तथा आत्मविश्वास के सहारे अंग्रेजों को भारत छोड़ने पर विवश किया। स्वामी विवेकानन्द एवं रामतीर्थ जब संन्यासी का वेष धारण कर अमेरिका गये तो उपहास के पात्र बने किन्तु बाद में उन्होंने अपने आत्मविश्वास के सहारे विश्वास को जो कुछ दिया वह अद्वितीय है। आत्मविश्वास के समक्ष विश्व की बड़ी से बड़ी शक्ति झुकती है और भविष्य में भी झुकती रहेगी। इसी आत्मविश्वास के सहारे आत्मा और परमात्मा के बीच तादात्म्य उत्पन्न होता है तथा अजस्र शक्ति के स्त्रोत का द्वार खुल जा...